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भारतीय किसान मजदूर यूनियन संगठन की सरकार को किसानो की भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित समस्याओ के समाधान हेतु उचित सलाह

भारतीय किसान मजदूर यूनियन (BKMU) ने हाल ही में उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण और मुआवजे से संबंधित मुद्दों पर सरकार को कई सुझाव और मांगें प्रस्तुत की हैं। इनमें प्रमुख रूप से उचित मुआवजे की मांग, विकसित भूमि का वितरण, सर्किल रेट का पुनरीक्षण, और प्रभावित किसानों के पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता शामिल है।

उदाहरण के लिए, नवंबर 2024 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने भूमि अधिग्रहण से जुड़ी लंबित समस्याओं के समाधान के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन (BKU) ने किया, जिसमें उचित मुआवजे, 10% विकसित भूमि, और अधिग्रहित भूमि के लिए 64.7% बढ़ा हुआ मुआवजा शामिल था।

इसी प्रकार, फरवरी 2025 में यमुना प्राधिकरण के अंतर्गत आने वाले 14 गांवों के विस्थापित किसानों ने महापंचायत आयोजित की, जिसमें उन्होंने भूमि अधिग्रहण नीति पर सवाल उठाते हुए सर्किल रेट संशोधन और उचित मुआवजे की मांग की।

इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि BKMU और अन्य किसान संगठनों ने भूमि अधिग्रहण और मुआवजे के मुद्दों पर सरकार को सलाह और सुझाव दिए हैं। हालांकि, लखनऊ में विशेष रूप से भूमि अधिग्रहण के संबंध में BKMU की सलाह के बारे में वर्तमान में उपलब्ध जानकारी सीमित है।

छह महीने पहले, लखनऊ के सरोजनीनगर और कालिया खेड़ा गांवों में किसानों ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। किसानों का आरोप था कि एलडीए उनकी भूमि का अधिग्रहण उचित मुआवजा दिए बिना कर रहा है। इस प्रदर्शन के दौरान, ‘बाबा का बुलडोजर’ नामक मशीनरी भी मौके पर पहुंची थी, जिससे तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई। किसानों ने उचित मुआवजे और भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग की थी।https://youtu.be/S_uSQ7ChadA?si=zCZ0MRljLrA4CGEK

यह विरोध प्रदर्शन भारतीय किसान मजदूर यूनियन (बीकेएमयू) के नेतृत्व में किया गया था, जिसमें किसानों ने अपनी समस्याओं को उजागर किया और सरकार से न्याय की मांग की। किसानों का कहना था कि बिना उचित मुआवजे के भूमि अधिग्रहण से उनकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, और वे इस प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और न्याय की मांग कर रहे थे।

इस प्रकार के विरोध प्रदर्शनों से यह स्पष्ट होता है कि भूमि अधिग्रहण और मुआवजे के मुद्दों पर किसानों की चिंताएं गंभीर हैं, और वे अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर आवाज उठा रहे हैं।